आई -तृतीय पुण्यस्मरण

आई -तृतीय पुण्यस्मरण (२९.०८.२०१७)

आई , बघता बघता तीन वर्षे झाली पण तुला जाऊन. करतोय प्रयत्न तुझ्याविना जगण्याचा आम्ही लोक ,तसं चाललं आहेच पुढे सर्वकाही भरधाव पण एक सल आहे मनात तू नसल्याची. पण आता काय करावे अश्या दोलायमान अवस्थेत भगवद गीतेचा जरा आधार वाटतो आहे. अर्थात अजून फक्त सुरुवात केलीय भगवद गीतेबद्दल कुतुहूल वाटल्याने अधिक माहिती मिळवण्याची तीही विस्कळीत स्वरूपात आहे,सातत्यपूर्ण नाही हवी तितकी पण आश्वासक नक्कीच आहे. तेव्हा बघतो मला (किंवा प्रत्येकाला ) कधीना कधी पडणाऱ्या काही गूढ- गहन  प्रश्नाची समाधानकारक उत्तरे  भगवद गीतेच्या साहाय्याने मिळविता येतात का ते ज्यात आत्मा आणि त्याच्या अमरत्वाबद्दल खालील उल्लेख आहे :


भगवद गीता अध्याय २,श्लोक २२
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।

अर्थात जैसे जगत् में मनुष्य पुराने जीर्ण वस्त्रोंको त्याग कर अन्य नवीन वस्त्रोंको ग्रहण करते हैं, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरोंको छोड़कर अन्यान्य नवीन शरीरोंको प्राप्त करता है. अभिप्राय यह कि (पुराने वस्त्रोंको छोड़कर नये धारण करनेवाले) पुरुषकी भाँति जीवात्मा सदा निर्विकार ही रहता है.                      
श्लोक २३
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।

 अर्थात इस उपयुर्क्त आत्माको शस्त्र नहीं काटते, अभिप्राय यह कि अवयवरहित होनेके कारण तलवार आदि शस्त्र इसके अन्गोंके टुकडे़ नहीं कर सकते। वैसे ही अग्नि इसको जला नहीं सकता अर्थात् अग्नि भी इसको भस्मीभूत नहीं कर सकता।

        जल इसको भिगो नहीं सकता. क्योंकि सावयव वस्तुको ही भिगोकर उसके अन्गोंको पृथक्-पृथक् कर देनेमें जलकी सामर्थ्य है. निरवयव आत्मामें ऐसा होना सम्भव नहीं। उसी तरह वायु आर्द्र् द्रव्यका गीलापन शोषण करके उसको नष्ट करता है अतः वह वायु भी इस स्व-स्वरूप आत्माका शोषण नहीं कर सकता।                      
श्लोक २४
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य ऐव च।नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः।।

अर्थात यह अात्मा न कटनेवाला, न जलनेवाला, न गलनेवाला अौर न सूखनेवाला है )। अापसमें एक दूसरेका नाश कर देनेवाले पञ्चभूत इस अात्माका नाश करनेके लिये समर्थ नहीं हैं। इसलिये यह नित्य है।

        नित्य होनेसे सर्वगत है। सर्वव्यापी होनेसे स्थाणु की भाँति स्थिर है। स्थिर होनेसे यह अात्मा अचल है अौर इसीलिये सनातन है अर्थात् किसी कारणसे उत्पन्न नहीं हुअा है। पुराना है।


आणि अजून खूप काही .......

तुझा ,
भाऊ . 

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